शीर्षक- दो मुसाफ़िर
लेखक- ज्ञान खाण्डे
पृष्ठ- 143
यह किताब कबीर और श्रुति की कहानी के साथ साथ प्रेरणादायी भी है, श्रुति जो अपने जीवन से निराश हो चुकी है और उसे किसी पर भी विश्वास नहीं है, उसकी मुलाकात होती है कहानी के नायक कबीर से जो पेशे से इंजीनियर है और अपने जीवन में अकेला है उसे श्रुति से पहली नज़र में प्यार हो जाता है ।
इसी के साथ कहानी आगे बढ़ती है और दोनों की मुलाकातों का शिलशिला बढ़ता है जिससे आपको श्रुति के बारे में जानने का मौका मिलता है लेकिन कबीर के बारे में लेखक ने अंत तक सस्पेंस बना कर रखा है कि वो कौन है जिसकी वजह से कबीर के चरित्र का उतना अच्छा चित्रण नहीं हो पाया जो शायद और अच्छे से हो सकता था।
कबीर अपनी हर कोशिश करता है श्रुति के अंदर विश्वास जगाने की जिसके लिए लेखक ने कबीर से बहुत से मोटीवेश्ननल संवाद बुलवाए हैं जो आपको अच्छे भी लगेंगे
इस किताब की सबसे खूबसूरत बात इसमें जैसलमेर की यात्रा का वर्णन है जिसे पढ़ते हुए आप खुद को वहीं रेत में ही पाएंगे
लेखक ने प्राकृतिक वातावरण का वर्णन बहुत खूबसूरती से किया है जैसे बस की छत पर बैठ कर यात्रा करना हो, रेगिस्तान, पहाड़, बारिश, हवा, सुबह आदि सभी को पढ़ते हुए आप उसे महसूस करने लगेंगे।
लेखक ने कबीर से श्रुति की तारीफ में कई वाक्य बुलवाये हैं लेकिन एक भावनात्मक जुड़ाव की कमी खलती है।
लेखक की भाषा सरल और सहज है जिसे आसानी से पढ़ा और समझा जा सकता है।
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