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Tuesday, March 22, 2022

Book Review - मुसाफ़िर Cafe.



🌻"हम सभी की जिंदगी में कुछ ऐसी कहानियाँ होती हैं
जिन्हें अगर हम न सुनाएँ तो पागल हो जाएँगे।"🌻

दिव्य जी की किताबों को पढ़ कर दिल को सुकून मिलता है,मुसाफ़िर कैफे भी उसी में से एक है। 
इस किताब के पात्र सुधा और चंदर का नाम धर्मवीर भारती जी के उपन्यास गुनाहों का देवता से प्रेरित होकर लेखक ने चुना है
अगर आपने गुनाहों का देवता पढ़ी है तो कहानी के पहले पन्ने से ही आप उन दोनों से जुड़ाव महसूस करने लगेंगे और अगर नहीं भी पढ़ी है तब भी सुधा और चंदर आपके दिल में बस जाएंगे। 
दिव्य जी की सबसे पहली किताब अक्टूबर जंक्शन पढ़ी थी तब से ही उनके हिंदी लेखन से प्रभावित हो गई अब मुसाफिर कैफे पढ़ी तो अहसास हुआ कि ये एक बड़ी सी बात को भी खुबसूरती से लिखकर आसान कर देते हैं. पूरी किताब में इतनी सुंदर बातें हैं कि अगर आप हाईलाइट करने बैठेंगे तो पूरी किताब ही रंग जाएगी। 
यह किताब मुझे इसलिए भी बहुत पसंद आई क्योंकि इसमें किताब और पहाड़ दोनों ही हैं. पहाड़ो पर मुसाफिर कैफे खोलना अपने आप में ही बहुत रोमांचक है । 
इस किताब की मेरी कुछ पसंदीदा पंक्तियाँ-
🌻"थोड़ा सा पागल हुए बिना इस दुनिया को झेला नहीं जा सकता।"
🌻"असल में बातें हमेशा अधूरी ही रहती हैं, ऐसा तो कभी होता ही नहीं है कि हम बोल पाएँ की मेरी उससे जिंदगी भर की सारी बातें पूरी हो गईं ,हम सभी अपने अपने हिस्से की अधूरी बातों के साथ ही एक दिन यूँ ही मर जाएँगे।"
🌻"बाहर से हमारी लाइफ जितनी परफेक्ट दिखती है उतनी होती नहीं। "
🌻"हम यादें कहाँ रखते हैं ये तो खैर किसी को पता नहीं होता काश! कि हम अपनी यादें समझ पाते काश! कि हम जिंदगी समझ पाते, काश! कि हम मोमेंट थोड़ा लंबे टाइम तक पकड़ पाते।"
ऐसी बहुत सी खूबसूरत पंक्तियाँ हैं इस किताब में जो आपके दिल को छू जाएंगी। 

अगर आप को भी हिन्दी पढ़ना पसंद है तो दिव्य जी की किताबें जरूर पढ़े । 


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